कैसे संत रविदास जी ने ठाकुर को जल पर तैराया
एक बार काशी नरेश वीर सिंह बघेला के पास कुछ लोगों ने शिकायत की कि आप के राज्य में एक शूद्र रविदास धर्म गुरु बन कर लोगों को उपदेश देता हैं, यह बात ठीक नहीं हैं। यह काम तो ब्राह्मणों का है।
यह शिकायत जब राजा ने सुनी तो राजा नें संदेश भेज कर गुरु रविदास जी को अपनी सभा में बुलाया और साथ ही विरोधी दल को भी। दोनों पक्षों के बीच शास्त्रार्थ करवाया। इस दृश्य को देखने के लिए बहुत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए। काफी लम्बे समय तक चर्चा चलती रही। गुरु रदिवास जी के सामने पंडितों का पक्ष निर्बल सिद्ध हुआ।
विरोधियों ने जब देखा कि उन का पक्ष निर्बल हो रहा है तो उन्होंने प्रयास किया कि कोई निर्णय न होने पाए। ऐसी स्थिति में जनता की इच्छा और राजा की आज्ञा के अनुसार फैसला हुआ कि अपने-अपने ठाकुर यहाँ सभा में लाओ। उनको गंगा जी में बहा कर फिर वापिस बुलाने का आदेश हुआ। निर्णय लिया गया कि जिसके ठाकुर बुलाने पर ऊपर आ जाएँगे उस को पूजा और उपदेश करने का अधिकार होगा। विजेता को सोने की पालकी में बिठा कर पूरे नगर में घुमाया जाएगा।
नियत अवसर पर गंगा जी के तट पर बहुत सारे लोग (राजघाट के स्थल पर) यह लीला देखने के लिए पहुँचे। पंडित जन काठ के ठाकुर लेकर आए और गुरु रविदास जी पत्थर की शिला को उठा लाए जिस पत्थर पर वे अपना दैनिक कार्य किया
करते थे। पंडित जन यह देख कर मन ही मन खुश हो रहे थे कि हम इस मुकाबले में जीत जाएँगे और रविदास जी हार जाएंगे, क्योंकि पत्थर पानी में डूब जायेगा।
बहुत भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी, सब लोग इन्तजार में थे कि देखो इस मुकाबले में कौन जीतता है। लोगों में उत्सुकता थी कि कब काशी नरेश वीर सिंह बघेला का आदेश होगा। समय देखते हुए बादशाह ने पहले पंडितों को आदेश दिया कि तुम अपने ठाकुर जी को गंगा जी में बहाओ और फिर वापिस बुलाओ। राजा के आदेश को पाकर पंडित जनों ने अपने ठाकुर को गंगा जी प्रवाहित धारा में बहा दीये। इस के पश्चात् मंत्र उच्चारण करके ठाकुरों कोवापिस बुलाने लगे। यह सब कुछ दूर दूर से आए हुऐ लोग देख रहे थे। बहुत देर तक बुलाने पर भी जब ठाकुर जी पानी के ऊपर नहीं आए, तब काशी नरेश ने गुरु रविदास जी को कहा और कहा कि रविदास जी ! आप भी अपने ठाकुर जी को गंगा जी में बहा दो और फिर उनको वापिस बुलाओ।
गुरु रविदास ने राजा का आदेश सुन कर प्रभु को याद किया कि प्रभु जी मुझे केवल आप का ही सहारा है इस मुश्किल में मैने आप को याद किया है आप आकर दर्शन दीजिए और मेरी लाज रखिए

गुरु रविदास जी आँखें बन्द कर गंगा जी के तट पर बैठ गऐ और प्रभु स्तुति में बोलने लगे। कहने लगे कि हे प्रभु जी मैंने आप के साथ सांची प्रीति लगाई है। *
जउ तुम गिरिवर तउ हम मोरा।
जउ तुम चंद तउ हम भए है चकोरा ॥१ ॥
माधवे तुम न तोरहु तउ हम नही तोरहि।
तुम सिउ तोरि कवन सिउ जोरहि ॥१ ॥ रहाउ ॥
जउ तुम दीवरा तउ हम बाती।
जउ तुम तीरथ तउ हम जाती ॥२ ॥
साची प्रीति हम तुम सिउ जोरी।
तुम सिउ जोरि अवर संगि तोरी ॥३ ॥
जह जह जाउ तहा तेरी सेवा।
तुम सो ठाकुर अउरु न देवा ॥४ ॥
तुमरे भजन कटहि जम फांसा।
भगति हेत गावै रविदासा ॥५ ॥५ ॥
कूपु भरिओ जैसे दादिरा कछु देसु बिदेसु न बूझ । ऐसे मेरा मनु बिखिआ बिमोहिआ कछु आरा पारु न सुझ ॥१ ॥ सगल भवन के नाइका इकु छिनु दरसु दिखाइ जी ॥१ ॥ रहाउ ॥
मलिन भई मति माधवा तेरी गति लखी न जाइ। करहु क्रिपा भ्रमु चूकई मै सुमति देहु समझाइ ॥२ ॥
जोगीसर पावहि नही तुअ गुण कथनु अपार। प्रेम भगति कै कारणै कहु रविदास चमार ॥३ ॥१ ॥
उन्होंने बिह्वल हो कर यह पद भी कहाः आयो आयो हौं देवाधिदेव तुम सरन आयो। सकल सुख का मूल जा को नहीं समतूल सो चरन मूल पायो।
लियो विविध जोनि वास जम को अगम त्रास तुम्हारे भजन बिन भ्रमत फिर्यो ।
माया मोह विषय लंपट निकाम यह अति दुस्तर दूर तर्यो।
तुम्हारे नाम विसास छांडिए आन आस
संसारी धर्म मेरो मन न धीजै।
रविदास की सेवा मानहु देव पतित पावन नाम आजु प्रगट कीजै।
यह पद पूरा कहने के बाद जब श्री गुरु रविदास जी ने अपने नेत्र खोले तो क्या देखा कि जल के ऊपर शिला रूप ठाकुर जी तैर रहे हैं। सतिगुरु रविदास जी प्रेम भाव से ठाकुर जी को जिस ओर बुलाते हैं उसी तरफ ठाकुर जी दर्शन देते हैं। सारी दुनियां यह अदभुत दृश्य देख कर गुरू जी की जय जय कार करने लगी। सब लोग गुरु रविदास जी को साक्षात् परमात्मा का रूप समझने लगे। सभी ने गुरु जी के चरणो कँवलों में दंडवत् प्रणाम किया। गुरू जी ने सबको उपदेश दिया कि हर जीव को अपनी इच्छा अनुसार प्रभु की पूजा करने का अधिकार है। । राजा बीर सिंह बघेला ने भी श्री गुरु रविदास जी को प्रणाम किया और श्री गुरु रविदास जी को विनय की कि आप मुझे अपना शिष्य बना लें। राजा ने सब लोगों को कहा कि मेरे गुरु रविदास जी प्रभु का स्वरूप हैं। आप लोगों को इनके साथ ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए थी। आज हम सब को ठाकुर जी का साक्षात् दर्शन हुआ है हम सब के अहो भाग्य हैं।
सब लोग जब प्रणाम कर चुके तो बनारस शहर में श्री गुरु रविदास जी को श्रद्धा पूर्वक हाथी पर सोने की पालकी में बिठा कर और छत्र लगाकर गुरू जी हाथी पर सवार आगे-आगे और राजा समेत सबी लोग गुरू जी के पीछे-पीछे चले और शहर की परिक्रमा की गई। सभी लोग श्री गुरु रविदास जी के दर्शन करके आन्नदित हो रहे थे। पालकी जहाँ-जहाँ से गुजरती थी वहाँ-वहाँ सभी नगर निवासी प्रेम भाव से फूलों की वर्षा कर रहे थे। शाम को श्री गुरु रविदास जी को उन के स्थान पर पहुँचया गया। गरीब लोगों को आज बहुत बड़ी प्रसन्नता प्राप्त हुई। सभी लोग श्री गुरु रविदास जी के आदेश के अनुसार सत्करम में लग गये और सभी लोग नित्य प्रति गुरु जी के उपदेश को सुन कर जीवन में ग्रहण करके मनुष्य जन्म का लाभ लेने लगे। आओ आज, हम सब मिल कर गुरु जी के उपदेश को अपने जीवन में धारण करके अपने जीवन को पवित्र बनाएं और गुरु जी के जो पावन कल्याणकारी उपदेश हैं उन को पढ़ सुन कर और हृदय में धारण करके इस अमूल्य जन्म को सफल करें।
श्री गुरु रविदास महाराज की जय ॥
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